भारत गांव में बसा है यह कहावत शतप्रतिशत सच है। भारत की संस्कृति गांव में ही देखी जा सकती है। ग्रामीण क्षेत्र का जीवन कुछ निराला ही है । ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे देसी जुगाड़ कर प्रकृति के खेलों का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं। इस तरह का आनंद शहरों में खरीदने से भी नहीं मिलता।
आज मैं पिंडकेपार गांव में पहुंचा तो गांव के बच्चे देसी जुगाड़ कर खेल रहे थे । इस खेल को देखकर मुझे 40 वर्ष पुराना बचपन याद आ गया ।
गांव का बचपन शहर से बिल्कुल कुछ अलग ही होता है। शहरों में बच्चों का बचपन अब महंगे खिलौनों, मोबाइल के साथ बंद कमरों में सिमट कर रह गया है, जबकि गांव में बच्चों का बचपन उससे हटकर होता है। ना उनके पास महंगे खिलौने होते हैं और ना ही उनके हाथों में मोबाइल। गांव में बच्चे खुले आसमान के नीचे प्रकृति की छांव में कभी गिल्ली-डंडा तो कभी कंचे का खेल तो कभी घर में पड़ी साइकिल का टायर और गांव के तालाब में डुबकी ऐसे अनगिनत देशी खेल जहां उनके खेल का हिस्सा होते हैं। वहीं, उनको शारीरिक रूप से हर परिस्थितियों से लडऩे के लिए मजबूत भी बनाते हैं। समय के साथ गांव के बच्चे भी खेल के लिए देशी जुगाड़ से नए-नए आविष्कार कर उससे खेलकर अपना बचपन जी रहें हैं।
ऐसा ही कुछ देशी जुगाड़ से बच्चों के निराले व अनोखे खेल को मैने आज रविवार 13 अप्रैल को पिंडकेपार ( गोरेगांव जिला गोंदिया) में करीब से देखा है। जहां इलाकों के बच्चों की मनोरजंन की अलग तरह की झलक देखने को मिल रही है। मौज-मस्ती और खेलने के लिए खुद देशी जुगाड़ से बहुत सारे खिलौने, सवारी गाड़ी बना करके आनंद और मस्ती की पाठशाला में डूबे हुए थे।
पिंडकेपार गांव के बच्चे साइकिल के खराब पहियों से लकड़ी के सहारे वाहन बनाकर उस पर सवार होकर बड़ी ही मासूमियत के साथ खेलकर मुस्कुराते हुए मिले। इस तरह का आनंद शहरों में खरीदने से भी नहीं मिल सकता। अंत मे मैं भरत गोदरू घासले रिपोर्टर आप सभी से अर्थात पिंडकेपार गांव से अपने परिवार की परवरिश और अपना भविष्य क उज्जवल बनाने के लिए शहरों में निवास कर रहे हैं ऐसे परिवारों को हमारा एक निवेदन है कि वे अवकाश के दिन अपने परिवार सहित जरूर अपने गांव में आए और अपने बच्चों को तथा आने वाली पीढ़ी को ग्रामीण संस्कृति को अपनाने का निवेदन करे।
👏भरत घासले, मु. पिंडकेपार, तहसील गोरेगांव, जिला गोंदिया
मो. 9765416303